पंजाब नेशनल बैंक घोटाला | नीरव मोदी | मेहुल चौकसी | गोकुलनाथ शेट्टी

पंजाब नेशनल बैंक घोटाला | नीरव मोदी | मेहुल चौकसी | गोकुलनाथ शेट्टी
पंजाब नेशनल बैंक जो कि भारत का पुराना और दूसरा बड़ा सरकारी वाणिज्यिक बैंक है और अब इस बैंक को लगभग 11300 करोड़ रूपये की चपत लगाने में मदद करने वाले मददगार बैंक के अंदर ही बैठे थे, इन्हीं लोगों ने नीरव मोदी और उस के मामा मेहुल चौकसी को ऋण दिलवाया था। इन मददगारों के नाम हैं गोकुलनाथ शेट्टी जो कि तत्कालीन डिप्टी जनरल मैनेजर अब रिटायर हो गए और मनोज हनुमंत खरात हैं। इस के अलावा दो अन्य नाम हेमन्त भट्ट और कविता मानकीकर भी शक के दायरे में हैं। सच तो यह है कि 7 साल से चल रही इस घपलेबाजी में शामिल नीरव के मददगार बैंक शाखा के अंदर ही एक गुप्त शाखा चला रहे थे। नीरव मोदी और कुछ अन्य जवाहरात आभूषण कारोबारियों को गलत तरीके से सहायता दी जा रही थी, इसके बारे में सरकार और पीएनबी के शीर्ष प्रबंधन को इस घपले का एहसास तो बहुत पहले हो चुका था, लेकिन इस पर रोक नहीं लगाई जा सकी क्योंकि यह घपला इतने शातिराना तरीके से किया गया था कि इन्हें न तो बैंकों की ऑडिट में पकड़ा जा सका और न ही दूसरी जांच पड़ताल में।

     पंजाब नेशनल बैंक की मुम्बई स्थित इस शाखा के कुछ कर्मचारी नीरव मोदी समूह की कई कंपनियों जैसे सोलर एक्सपोर्ट्स, स्टेलर डायमंड्स आदि के पक्ष में एलओयू  यानि लेटर ऑफ अंडरटेकिंग जारी कर रहे थे। एलओयू गारंटी का एक ऐसा प्रपत्र होता है, जिसके द्वारा ग्राहकों को दूसरे बैंक वित्तीय सुविधा देते हैं। इन सभी कंपनियों का उक्त शाखा में सिर्फ चालू खाता था और उन्हें फंड उपलब्ध कराने की कोई सुविधा नहीं मिली हुई थी। पंजाब नेशनल बैंक का दावा है कि मुंबई स्थित जिस शाखा से एलओयू जारी किया जा रहा था उसकी जानकारी उच्च स्तर के अधिकारियों तक को नहीं लगने दी क्योंकि इस कारिस्तानी की कहीं एंट्री तक नहीं की गयी थी।

     बैंकिंग उद्योग के जानकार लोगों का कहना है कि अगर ऐसा हुआ है तो शाखा प्रबंधक और क्षेत्रीय प्रबंधक के स्तर पर भी बड़ी लापरवाही हुई है। दरअसल, यह पूरा खेल बैंकिंग सिस्टम में चल रहे एक पृथक सॉफ्टवेयर सिस्टम ‘स्विफ्ट’ के जरिये हुआ। आमतौर पर सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्यूनिकेशन (स्विफ्ट) का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैंकिंग ट्रांजेक्शन व मैसेजिंग के लिए होता है।

     विदेश स्थित बैंकों की उन शाखाओं के स्तर पर भी लापरवाही बरती गई जिन्हें एक ही कारोबारी के लिए लगातार कई वषों से एक ही शाखा से अरबों रुपये के एलओयू प्राप्त हो रहे थे। नियमों के मुताबिक उन बैंकों के अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट पंजाब नेशनल बैंक के उक्त शाखा प्रबंधक के साथ ही अपने मुख्यालय को भी करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके चलते विदेश स्थित इन बैंकों के कर्मचारियों की भूमिका भी संदेहास्पद होती है। पंजाब नेशनल बैंक ने यह बात स्वीकार की है कि इस तरह की गड़बड़ी के बारे में वर्ष 2011 में भी पता चला था और उसकी जानकारी सम्बन्धित एजेंसियों को दी गई थी फिर भी तत्कालीन यूपीए सरकार का इन घोटालेबाज़ों के विरुद्ध कोई ठोस कदम ना उठाना, यूपीए सरकार पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है जबकि वर्तमान एनडीए सरकार की घेरने में यूपीए का प्रमुख घटक दल काँग्रेस के नेता सब से आगे हैं। अब जब नीरव मोदी की कंपनी पर वित्तीय घोटाले को लेकर जांच एजेंसियों की नजर एनडीए सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2014 से ही थी। खास तौर पर जिस तरह से नीरव मोदी रत्नों व आभूषणों के निर्यात में गड़बड़ी कर रहे थे, इसकी जांच की जा रही थी और इस घोटाले को उजागर भी किया गया तो अपनी यूपीए सरकार की विफलताओं पर पर्दा डालने की कोशिश में काँग्रेस के नेता मोदी सरकार पर कीचड़ उछलने में लग गये।

     अब वर्तमान मोदी सरकार और प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव मोदी की देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित सम्पत्ति सीज कर ली है जिस का अनुमानित मूल्य लगभग 6500 करोड़ बताया जा रहा है तो समय रहते की गयी त्वरित कारवाही के लिए केंद्र सरकार और प्रवर्तन निदेशालय को साधुवाद देना ही होगा, साथ ही भविष्य में ऐसे घोटाले ना हों, इस के लिए बैंकिग सिस्टम की कुछ कमियों को जल्द दूर करना होगा और इस की गहन जाँच करवाते हुए नीरव मोदी के साथ साथ इस घपले में शामिल अन्य लोगों पर भी ठोस कारवाही की जानी चाहिये फिर वो चाहे तत्कालीन बैंक कर्मचारी हों या अन्य जाँच अधिकारी।

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