आरक्षण_दवा_या_जहर

गुजरात चुनाव में मिली आरक्षण बवाल की आंशिक सफलता से उत्साहित मृत प्रायः काँग्रेस अब उन सभी बड़े राज्यो भी यही सब कुछ करने जा रही है जहाँ अब विधान सभा चुनाव होने हैं और खासकर उन्हीं राज्यो पर फोकस किया जा रहा है जहाँ भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं क्योंकि एक यही तो ऐसी लॉलीपॉप है.....
       जिसे कभी चूसा चूसा कर तो कभी सिर्फ दिखा कर आज तक काँग्रेस ने राज किया....
गुजरात में चलो 23 साल से भाजपा का शासन है फिर भी पटेल जैसे समृद्ध और कर्मठ समुदाय को आरक्षण की आग में झोंक दिया लेकिन राजस्थान में बराबर राज करने के बाद भी काँग्रेस ने गुर्जरो को कभी आरक्षण नहीं दिलाया, बस सत्ता से बाहर होते ही फिर से आरक्षण की आग लगा कर माहौल बिगाड़ने का काम रह गया है।
     हद तो हरियाणा में कर दी, जब भाजपा सत्ता में आई तब समर्थवान जाट समुदाय को आरक्षण की भट्टी में झोंक बदनाम कर डाला जबकि 10 साल काँग्रेसी जाट नेता हुड्डा मुख्यमन्त्री रहा और केंद्र में भी काँग्रेसनीत सरकार थी, लेकिन कभी किसी जाट को आरक्षण की याद नहीं आई।
     वैसे भी आरक्षण रूपी दवा की जब जरूरत महसूस की गयी तब एक बीमारी रही थी समाज में "अस्पर्शयता".....
उस वक्त यही यही अनुमान रहा था कि आगामी दस वर्ष तक ही इस दवा की जरूरत रहेगी और दस वर्ष बाद यह इलाज बन्द कर दिया जयेगा लेकिन मर्ज बढ़ता ही गया दवा लेते लेते....
आज तो प्रत्येक स्वस्थ समृद्ध समुदाय भी यही दवा के सहारे ही जीना चाहता है।
     अब वक्त आ गया है कि जब दवा से रोग सही होने की बजाय बढ़ता ही जाये तो निश्चित ही उस दवा और इलाज की समीक्षा की जाये और इलाज का तरीका बदला जाये।
     ऐसा बहुत पहले हो जाना चाहिए था लेकिन राजनीती डॉक्टरों ने रोग को खत्म करने की बजाय उसे नासूर में ही बदल डाला। आज आरक्षण ना सिर्फ व्यक्ति विशेष को खराब कर रहा है बल्कि समुदाय, समाज और राष्ट्र को भी गर्त में धकेल रहा है।
     अतः अब आरक्षण की नये सिरे से समीक्षा किये जाने की दरकार है जिस में केवल निर्धन (चाहे किसी जाति समुदाय का हो) को ही इस का लाभ मिले और वो भी एक बार अथवा तब तक जब तक कि वो समाज की मुख्य धारा में समाहित नहीं हो जाता।
मेरी नजर में आरक्षण का प्रारूप कुछ इस तरह हो सकता है :
** आरक्षण उन सभी को मिले जिन की परिवारिक वार्षिक आय (माता पिता और अविवाहित बच्चो की संयुक्त आय) दो लाख रूपये से कम हो। ये लाभ उन्हें ही मिलेगा जो हर साल आयकर रिटर्न भरते हों।
** इस लाभ के अन्तर्गत केवल स्कूल फ़ीस, किताबें, मुफ्त अतिरिक्त कोचिंग, प्रतियोगी परीक्षा फ़ीस और उस परीक्षा हेतु निकटम परीक्षा स्थल तक जाने का परिवहन व्यय ही देय हो।
** रोजगार के लिए केवल एक बार ही लाभ मिले, उस के बाद किसी अन्य नौकरी या पदोन्नति में कोई लाभ नहीं मिलेगा।
** उच्च पदों और ऊपर इंगित प्रथम सुझाव में शामिल सभी व्यक्तियों के बच्चो को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
** उच्च शिक्षा जैसे IIT, MBBS आदि में कोई उम्मीदवार आरक्षण का लाभ लेता है तो उसे नौकरी में ऐसा लाभ नहीं मिलेगा, हाँ इतना जरूर होगा कि उस की शिक्षा का सम्पूर्ण न्यूनतम खर्च केंद्र सरकार ही वहन करेगी।
** किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में आरक्षित और गैर आरक्षित वर्ग 50-50 प्रतिशत ही होगा और यदि लगातार दो वर्ष तक आरक्षित वर्ग 50% नहीं आता तो समीक्षा कर उस कोटे को घटाया जायेगा।
** किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को न्यूनतम 33% अंक लाने अनिवार्य होने चाहिये क्योंकि आरक्षण बौद्धिक स्तर पर नहीं हो। ऐसा इसलिए भी किया जाना जरूरी है ताकि व्यक्ति विशेष जिसे उस पद के लिए भर्ती किया जाना है उस की कार्य क्षमता और बौद्धिक गुणवत्ता में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।
*** सुझाव और भी हो सकते हैं !!
     यदि इन सुझाव पर ध्यान दिया जाता है तो निश्चित ही देश की योग्यता कभी मरेगी नहीं और देश निरन्तर विकास के पथ पर अग्रसर होगा साथ ही उन तथाकथित राजनितिक दलो को भी मौका नहीं मिलेगा, जो भोले भाले समाज को आरक्षण की आग में झोंक कर अपनी राजीनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं।
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