आम आदमी को छल रहा आम आदमी !!
नए साल की नई सुबह को अभी चंद दिन ही हुए हैं लेकिन कुछ लोगों की सुबह अब शायद कभी नहीं होगी....
जी हां यहां उन 44 लोगों की बात हो रही है जो हिन्दूस्तान के दिल यानि दिल्ली में मजबूरी के आसमां के नीचे ऐसे सोए अब कभी नहीं जाग पाएंगे !!
पूरी दुनिया में ठण्ड का कहर जारी है। अमेरिका, यूरोप, एशिया समेत लगभग संपूर्ण विश्व ठण्ड के आगे बेबस है। पक्की ईंटो के बन्द कमरे और फिर रूम हीटर की गर्मी के बीच सोने वालों क्या एहसास होगा, असल मार पड़ती है, दूर दराज से अपने और परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने आये बेसहारा बेघर उस शुद्ध आम आदमी पर जो बेचारा ऐसे सर्द मौसम में खुले आसमां को ही अपना ओढ़ना बना धरती माँ के गोद में सो जाने को मजबूर है।
अब बात हो रही है दिल्ली के उन 44 लोगों की जिनकी मौत ठण्ड के कारण हुई, तो जरूरी हो जाता है उस आम आदमी का जिक्र करना, जो लगभग 3-4 साल पहले अस्तित्व में आया था....
अपनी कद काठी से दोगुने नाप की आधी बाजू की कमीज पैंट बदन पर ओढ़े, मफलर लपेटे और सर पर सफेद टोपी लगाये, हाथ में सींक का झाड़ू, पैरों में पुरानी सी सैंडिल पहने और रुक रुक कर खों खों की आवाज़ से अपने होने का एहसास करवाता गहरे सांवले रंग का माध्यम कद वाला आम आदमी.....
जी जनाब आप ने सही पहचाना, वही आम आदमी अरविंद केजरीवाल, जो अब दिल्ली का मालिक बन चुका है। इतने सर्द मौसम में भी अब मफलर हवा हो चुका है हालांकि सफेद टोपी फिर भी कभी-कभी नजर आ ही जाती है, लेकिन तन पर अब करीने से इस्त्री किए हुए एकदम फिट ब्रांडेड कपड़े आ गए हैं और पैरों में भी सैंडल की जगह ब्रांडेड जूतों ने ले ली है और स्थापित हो चुके इस शख्स को अब अपने होने का एहसास कराने के लिए किसी तरह की खों खों की भी जरुरत नहीं रही।
400 पन्नो का पुलिंदा हाथ में लिये काँग्रेस की तत्कालीन मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित को जेल में चक्की पिसवाने के वायदे भी ना जाने किस सुनामी में बह गए ? अपनी बिरादरी के मालदारों को राज्यसभा में पहुचाने की कवायद में लगे मालिक को अब आम आदमी की जरूरत नहीं शायद !! अब ये मालिक अंडमान में सपरिवार छुट्टियों का आनन्द ले रहा है जबकि 9 करोड़ का फण्ड गरीब बेघर के रैन बसेरों के लिए पड़ा है और मात्र 6 दिन में 44 लोग असमय मौत के मुँह में चले गए। करोड़ो रुपये का, प्रदूषण की रोकथाम के लिए पड़ा फण्ड धूल हो जाता है और आमजन फेफड़ो की बीमारी से घिरता जा रहा है। कभी अपनी शिक्षा नीति को पुरस्कृत किया जाता है तो कभी अपनी स्वास्थ्य नीति की दुनिया भर में चर्चा का ढिंढोरा पीटा जाता हैं लेकिन मर्ज फिर भी बढ़ता ही जा रहा है।
खैर एक नई तरह की राजनीती का झण्डा उठाने वाला आम आदमी वही पुरानी राजनीती के स्याह रंगों में रंग गया है और बेचारा विशुध्द आम आदमी खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है।
जयहिन्द !!
वन्देमातरम !!