एक_नई_राजनीती का नैतिक पतन

2012 में हिंदुस्तान की राजनीति में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन ने एक आम आदमी को जन्म दिया। आम आदमी की हर आम समस्या से लड़ने के लिए इस आम आदमी ने एक राजनीतिक पार्टी खड़ी कर डाली जो आम_आदमी_पार्टी के नाम से जानी जाने लगी। सीधे सादे पहनावे के साथ, सर पर टोपी और हाथ में झाड़ू लिए, एक_नई_राजनीति करने का बीड़ा उठाए चल पड़ा यह आम आदमी और यही आम आदमी अरविंद_केजरीवाल के नाम से जाना गया। जिसने अपना राजनीतिक सफर दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव के साथ शुरू किया।  
     15 साल से सत्ता में बैठी कांग्रेस की मुख्यमंत्री साहिबा शीला दीक्षित के भ्रष्टाचारों का पुलिंदा हाथ में लिए अरविंद केजरीवाल ने चुनावी बिगुल फूंक दिया और अपने पहले ही इम्तिहान में आम जनता ने भी इस आम आदमी को सहर्ष स्वीकार कर लिया। चुनाव परिणाम में दिल्ली विधानसभा की 70 में से 28 सीट इस आम आदमी को दे कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बना डाला। 32 सीटों पर कब्जा जमाकर भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी तो वही मात्र 8 सीट के साथ कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसक गई बहुमत के 36 के आंकड़े से सभी पार्टियां दूर थी, तो कवायद शुरू हुई सत्ता हथियाने की आखिरकार भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिए आम आदमी पार्टी को बिना शर्त समर्थन देना कांग्रेस ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और इस तरीके से 28 दिसंबर 2013 को यह आम आदमी दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने में कामयाब हो गया लेकिन कांग्रेस के ही भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला पाना कैसे संभव हो पाता। सो 49 दिन के शासन के बाद 14 फरवरी 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और दिल्ली को राष्ट्रपति शासन के हवाले कर दिया। इस्तीफे के बाद यह आम आदमी बड़े ही संजीदा तरीके से फिर से सत्ता का खेल खेलने लगा। ठीक 1 साल बाद फिर से हुए चुनावों में आम जनता ने इस आम आदमी को 70 में से 67 सीट देकर एक इतिहास बना दिया। भारतीय जनता पार्टी को बची हुई 3 सीट पर जीत मिली और कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया। 1 साल बाद 14 फरवरी 2015 को एक बार फिर यह आम आदमी दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने में कामयाब हो गया।
     मुख्यमंत्री बनने के बाद अपनी आदत के मुताबिक अन्य लोगों पर, चाहे वह कोई राजनीतिज्ञ हो या फिर कोई उद्योगपति, समय-समय पर किसी ना किसी के विरुद्ध अनर्गल आरोप लगाना और फिर माफी मांग लेना यही सब कुछ इस आम आदमी की कार्यशैली का हिस्सा बन चुका था।
     अब मुद्दे पर आए तो "अति तो सभी चीज की खराब होती है" जैसी पुरानी कहावत ने दिल्ली में भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया और जीत की प्रचंडता ने आम आदमी को अरविंद केजरीवाल नाम के खास आदमी में बदल डाला। सत्ता की खुमारी और पद पाने की लालसा ने इस आम आदमी के गुरूर ने दिल्ली का मालिक बना दिया। मालिक ने अपनी मनमानी करते हुए अपने सभी चहेतों को मलाईदार पद बांटने शुरू कर दिए। जितने मंत्री बनाए जा सकते थे बना डाले और फिर जो बचे उन्हें भी तो मलाई खिलानी थी तो अपने 21 अन्य विधायकों को संसदीय सचिव बना डाला, सरकारी बंगला गाड़ी सब कुछ दे दिया जबकि सविंधान के अनुच्छेद 102 (1)(A) और 191 (1)(A) में ऐसा नहीं किया जा सकता।
      13 मार्च 2015 को सभी 21 विधायकों ने मलाई चाटने शुरू कर दी और इन पर आंच नहीं आए इसलिए जून 2015 में संसदीय सचिव को लाभ के दायरे से बाहर करने का विधेयक विधानसभा में पास कर, केंद्र सरकार के पास भेज दिया, जिसे केंद्र सरकार ने अस्वीकार कर दिया और यहीं से दिल्ली के मालिक का खेल बिगड़ना शुरू हो गया। 19 जून 2015 को दिल्ली सरकार के विधेयक के खिलाफ एडवोकेट प्रशांत पटेल ने एक याचिका दाखिल कर दी। अंततः 8 सितंबर 2016 को सभी संसदीय सचिवों को इस्तीफा देना पड़ा लेकिन मामला चुनाव आयोग के समक्ष विचाराधीन था, इसलिए अरविंद केजरीवाल और उसके 21 विधायक लाभ के दोहरे पद के पेंच में फंसे रह गए।
     अब इन 21 विधायकों में से एक विधायक जरनैल सिंह ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था, अतः बाकी बचे 20 विधायकों को चुनाव आयोग ने अयोग्य करार देकर अपना फैसला राष्ट्रपति महोदय को भेज दिया है। अब राष्ट्रपति महोदय हों या माननीय अदालत दोनों ही सविंधान के दायरे में ही अपना निर्णय देंगे इसलिए सभी 20 विधायकों की सदस्यता खत्म ही होगी। इसे अरविन्द केजरीवाल की नैतिक पराजय कहा जा सकता है।
     हालाँकि अब जो स्थिति है उसके अनुसार दिल्ली विधानसभा में 20 विधायक अयोग्य घोषित होने के बाद भी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के 45 विधायक हैं लेकिन इसमें से 5 विधायक बागी हैं और बागियों की सँख्या बढ़ जाती है तो अरविन्द केजरीवाल का दिल्ली का मालिक बने रहना खतरे में पड़ जाएगा, फिलहाल अरविंद केजरीवाल की सरकार को कोई खतरा नहीं है।
     खैर आगे क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से अरविंद_केजरीवाल का एक_नई_राजनीति दिखाने का सपना, वास्तव में सपना ही साबित होता दिखाई दे रहा है। दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीट और तीनों एमसीडी पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है इसलिये भाजपा और साथ ही अपना राजनितिक अस्तित्व बचाने में जुटी काँग्रेस ने अरविन्द_केजरीवाल को घेरना शुरू कर दिया है। अब देखना है कि दिल्ली का मालिक खुद को आम आदमी बना पाता है या नहीं !!
जयहिन्द !!
वन्देमातरम !!