काँग्रेस का थप्पड़काण्ड
आज एक ऐसा वाक्या घटित हुआ कि अब राजनेताओं के लिए भी सोचने का वक्त आ गया है।
हुआ कुछ यूँ कि आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी पार्टी की विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार के चिंतन के लिए हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला दौरे पर गए, तभी वहां पर कांग्रेस की विधायक आशा कुमारी और ड्यूटी पर तैनात महिला कांस्टेबल के बीच किसी बात पर बहस हो गई। इस बहस के दौरान विधायक आशा कुमारी ने ड्यूटी पर तैनात एक महिला कांस्टेबल के मुंह पर थप्पड़ जड़ दिया, जिसके जवाब में महिला कॉन्स्टेबल ने भी विधायक आशा कुमारी के मुंह पर जवाबी तमाचा मारा। इस के बाद आयोजकों के समझाइश के बाद मामला शांत हुआ।
भले ही यह मामला आयोजनों के समझाने से शांत हो गया हो लेकिन फिर भी हल्के अंदाज में लिया नहीं जा सकता क्योंकि ऐसे में जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विधानसभा चुनाव में हुई हार के आत्म चिंतन के लिए मीटिंग करने के लिए शिमला पधारे थे तो ऐसी बात पर चर्चा करना जरूरी हो जाता है।
आपको ज्ञात ही होगा कि जब हिंदुस्तान आजाद हुआ था तब देश के प्रधानमंत्री के चयन के लिए महात्मा गांधी ने राज्यों की विधान समितियों से वोटिंग करवाई थी। इस वोटिंग में सर्वाधिक 13 वोट लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के पक्ष में पड़े थे और मात्र एक वोट जवाहरलाल नेहरू के पक्ष में पड़ा था। बावजूद इस के महात्मा गांधी और नेहरू की हठधर्मिता के कारण सरदार पटेल के प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार होने के बाद भी नेहरू को प्रधानमंत्री पद पर बिठाया गया। यदि उस वक्त संचार के साधनों का समुचित प्रसार हुआ होता और जनता को उसी वक्त हकीकत पता चल गई होती तो जनता कभी भी नेहरु को प्रधानमंत्री के पद पर नहीं बिठाती और सरदार पटेल देश के प्रथम प्रधान मंत्री होते , तब निश्चित ही हिंदुस्तान के हालात आज बेहतर होते।
अब बात 1971 के लोकसभा चुनाव की तो उस वक्त इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ी और जीत भी गई लेकिन सामने प्रतिद्वंदी राजनारायण जैसा एक साधारण सा दिखने वाला शख्स था, फिर भी राजनारायण अपनी जीत के प्रति इतना आश्वस्त था कि उसके समर्थकों ने चुनाव परिणाम घोषित होने से पहले ही विजय जुलूस निकाल लिया था। जब परिणाम आया तो उसे इंदिरा गांधी की विजय गले नहीं उतरी और राज नारायण ने इंदिरा की जीत के खिलाफ अदालत में याचिका दायर कर दी और अदालत में अपने वकील शांति भूषण के मार्फत वह सभी सबूत पेश किए कि किस तरह तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने सत्ता का दुरूपयोग कर जीत हासिल की थी। अंततः इंदिरा का वो चुनाव रद्द कर दिया गया और एक बार फिर नेहरू खानदान की तानाशाही देखने को मिली और हिन्दुस्तान को " आपातकाल " का दंश झेलना पड़ा। प्रेस और मीडिया का दमन तो किया ही गया साथ में संजय गाँधी और उस के गुर्गो ने कैसे कानून और सविंधान की धज्जियाँ उड़ाई यह शायद छुपा नहीं है। फिर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे हालात में राजीव गांधी के बयान " बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है " ने आग में घी का काम किया।
यह सब कुछ ऐसी घटनाएं हैं जो बताती हैं कि किस तरीके से राजनेता प्रशासनिक अधिकारी एवं कर्मचारियों को अपने हाथ की कठपुतली बना लेते हैं। आज शिमला में जो कुछ भी हुआ, वह शायद कांग्रेस और खासकर नेहरू गांधी खानदान की परंपरा एवं सीख का ही नतीजा कहा जा सकता है कि आज भी कांग्रेस का हर स्तर का नेता प्रशासनिक अधिकारियों को अपने हाथ की कठपुतली ही मानता है, इसी क्रम में आज कांग्रेस की विधायक आशा कुमारी ने ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल को ही थप्पड़ जड़ दिया लेकिन अब वह समय नहीं रह गया की कोई खबर आम जनता तक नहीं पहुंच पाये।
जनता सब जान जाती है..... समझे !! आज मिडिया के इतने जरिये हैं कि किसी की करतूते छुप नहीं सकती। तू राहुल गांधी जी यदि आप वास्तव में आत्म चिंतन ही करने आए हैं तो यह भूल जाइए कि कभी टोपी पहन कर, तो कभी माथे पर हल्दी चन्दन पोत कर और कोट पर जनेऊ धरने की नौटँकियों के रास्ते चल सत्ता नहीं पाई जा सकती। यदि सत्ता पाना ही तो अभी भी जिस राज्य में तुम्हारी सरकार है वहाँ वह सब कुछ कर के दिखाइए जो मोदी जी को एक राज्य गुजरात के मुख्यमन्त्री से हिन्दुस्तान के प्रधानमन्त्री ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में हर दिल अज़ीज़ बना गया। किसी जाति समुदाय विशेष के बीच वोट बैंक की राजनीती छोड़, सब का साथ - सब का विकास की नीति पर चल कर दिखाओ। अपनी पार्टी के नेताओं को सैनिकों का सम्मान करना सिखाओ। धनबल, बाहुबल रूपी हथियार त्याग कर दिखाओ। जनता की खून पसीने की कमाई से अपना घर भरना छोड़ कर दिखाओ। पहले कुछ लोगो तक तुम्हारी कारगुजारियां पहुंचती थी और उन का दमन हो जाया करता था लेकिन वो वक्त नहीं रहा, जनता की आवाज़ दबा पाना नामुमकिन हो गया है।
खैर....!! जनाब राहुल गाँधी अब कम से तुम्हारे पास भी बहुत पुरानी पार्टी की कमान है, भले ही अब वो काफी हद तक सिमट चुकी है लेकिन सत्ता तो सत्ता ही होती है और उस के नशे का स्वाद भी अलग ही होता है। तुम्हे तो मम्मी की गद्दी के साथ साथ सीख भी मिली हुई है कि " सत्ता जहर होती है " , तो जनाब ध्यान रखना मंथन तक ही सीमित रहना हलक में मत उतार लेना।
जयहिन्द !!
वन्देमातरम !!