अंततः जीत तो विकास की ही होनी है

अब 2 राज्यों गुजरात और हिमाचल में विधानसभा चुनाव परिणाम भी आ गए हैं। दोनों राज्यों में जहां एक तरफ गुजरात में मतदाताओं ने 23 साल से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को पुनः सत्ता सौंप दी वहीं दूसरी ओर हिमाचल में सत्ता पर काबिज कांग्रेस को एक बार फिर बाहर का रास्ता दिखा दिया हालांकि हिमाचल में          मतदाताओं का रुझान ने अपने हिसाब से ही काम किया और बारी बारी से एक बार भाजपा फिर एक बार कांग्रेस को सत्ता सौंपते आए मतदाताओं ने इस बार पुनः भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंप दी। हिमाचल की जनता ने जहां भाजपा को एकतरफा जीत का तोहफा दिया तो वही पिछली दो बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले प्रेम कुमार धूमल जी को पराजित कर दिया। यह अपने आप में चौंकाने वाला परिणाम रहा खैर BJP के लिए कुल 68 सीटों में से 44 सीटों पर एकतरफा जीत और कांग्रेस का 21 सीटों पर सिमट जाना काफी सुखद रहा।
            अब गुजरात की बात करें तो पिछले 23 साल से लगातार भाजपा की एकतरफा जीत और कांग्रेस के लगभग नगण्य प्रभाव के चलते गुजरात चुनाव पर,समूचे भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर की नजरें थी।
          मोदी जी के विकास मॉडल के सामने कहीं भी टिकती नजर नहीं आ रही कांग्रेस ने भाजपा के परंपरागत पटेल पाटीदार वोट बैंक को अपना निशाना बनाया और साथ ही किसान एवं गरीब तबके की नाराजगी को भी अपना हथियार बनाया। कांग्रेस ने पटेल समाज के युवा चेहरे हार्दिक पटेल और गरीब आदिवासी दलित तबके के युवा चेहरों अल्पेश ठाकोर व जिग्नेश मेवानी को अपना हमसफर बना लिया। हालांकि अल्पेश ठाकोर अपनी जीत के बावजूद भाजपा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया लेकिन जिग्नेश मेवानी अपनी जीत के साथ-साथ भाजपा को थोड़ा बहुत नुकसान पहुंचाने में कामयाब हो गया तो वही हार्दिक पटेल खुद तो चुनावी रण क्षेत्र में नहीं उतरा लेकिन 2012 में भाजपा के गढ़ रहे क्षेत्र सौराष्ट्र कछ में काफी हद तक अपना प्रभाव जमाने में कामयाब रहा। यहां पर भाजपा को पटेल पाटीदार प्रभाव की 6 सीटों का नुकसान हुआ तो कांग्रेस को 8 सीटों का फायदा भी हुआ।
         हिंदुस्तान के आर्थिक विकास हेतु उठाए गए नोटबंदी और जीएसटी जैसे कड़े कदम का लगातार विरोध झेल रही मोदी सरकार ने व्यापारी वर्ग की नाराजगी के बावजूद सूरत जैसे व्यापारिक क्षेत्र कि 16 में से 15 सीटें जीतकर प्रभाव बरकरार रख पाने में सफल रही।
         कुल मिलाकर गुजरात चुनाव को देखा जाए तो 2012 में भाजपा की 115 सीटों के मुकाबले भले ही 99 सीट आई हो लेकिन उस का मत प्रतिशत 1.25% बढ़ा तो वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत भी 2.47% बढ़ने से कांग्रेस को 16 सीटों का फायदा हो गया।          
         मतगणना के शुरुआती दौर में जैसे ही रुझानों ने कांग्रेस की बढ़त दिखाई तो उसका भय अर्थ जगत पर ऐसा पड़ा कि सेंसेक्स 803 पॉइंट लुढ़क कर नीचे आ गया लेकिन अंतिम परिणाम भाजपा के पक्ष में आते ही और भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के साथ ही सेंसेक्स में 941 पॉइंट की रिकवरी के साथ 138 पॉइंट की बढ़त बना ली।
        अब यदि गुजरात चुनाव का विश्लेषण किया जाए तो जो माजरा सामने आया वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी के लिए और साथ ही गुजरात के स्थानीय भाजपा नेतृत्व के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव के एक सबक के रूप में देखा जाए तो बेहतर होगा। गुजरात की जनता ने एक बात तो स्पष्ट कर दी आर्थिक सुधारो हेतु लिए गए मोदी सरकार के फैसलों के साथ हैं लेकिन साथ ही गरीब और किसान वर्ग की अनदेखी को स्वीकार नहीं किया जा सकता। विकास के साथ साथ युवाओं के रोजगार पर भी विशेष ध्यान देना ही होगा। गुजरात की जनता के दिलो में आज भी नरेंद्र मोदी जी के लिये प्रेम और सम्मान है लेकिन मोदी जी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद लोकल लीडरशिप द्वारा कुछ वर्ग एवं क्षेत्र विशेष की अनदेखी भी जनता की नाराजगी का कारण बनी।
         ऐसे सभी कारणों से जनता की सरकार के प्रति नाराजगी जायज हो सकती है और निश्चित ही 2019 के लोकसभा चुनाव मे जीत के लिए गुजरात की लोकल लीडरशिप को ध्यान देना ही होगा।
         और अंत में गुजरात के साथ साथ सम्पूर्ण हिन्दुस्तान की जनता के लिए सन्देश कि जातिय आधार पर निजी स्वार्थ के लिए लड़ने वाले लोगों का समर्थन कर आप कभी भी नरेंद्र मोदी नहीं बना सकते।
जयहिन्द !!
वन्देमातरम !!
दिनेश भंडुला

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