नहीं तो दिल्ली दूर हो जायेगी : 2019

गुजरात चुनाव संपन्न भी हो गए और आज विजय रूपानी जी के नेतृत्व में मंत्रिमंडल ने शपथ भी ले ली। विजय रूपानी जी मुख्यमंत्री के तौर पर दूसरी बार गुजरात की बागडोर संभाल रहे हैं और नितिन पटेल उपमुख्यमंत्री रहेंगे। 
     इस मंत्रिमंडल में विभावरी दवे के रूप में एकमात्र महिला एवं ब्राह्मण को जगह मिली है। विभावरी दवे पूर्व में संसदीय सचिव भी रह चुकी हैं, इसके साथ ही सभी जाति समुदायों को लेते हुए मंत्रिमंडल का गठन किया गया है। मोदी जी की विकास यात्रा के स्तंभ रहे गुजरात मॉडल से ध्यान भटकाते हुए जिस प्रकार कांग्रेस ने दलित, ओबीसी और पटेल पाटीदार कार्ड खेला और उसका निश्चित ही फायदा भी उठाया था, इसी बात को मद्देनजर रखते हुए भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में गुजरात मंत्रिमंडल का गठन किया है, ऐसा लगता है। मंत्रिमंडल में ईश्वर परमार जैसे युवा दलित नेता और जयद्रथ परमार को जगह मिली तो कोली समाज के नेतृत्व के रूप में पुरुषोत्तम सोलंकी को मंत्री बनाया गया है। क्षत्रिय समाज के भूपेंद्र सिंह चुडासमा, मजबूत आदिवासी चेहरे गणपत वसावा, रमन पाटकर, कच्छ क्षेत्र में भारी विरोधी लहर के चलने के बावजूद पांचवी बार विधायक चुने गए वासन भाई आहीर को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली। OBC दिलीप ठाकोर, कांग्रेस के गढ़ में सेंधमारी करने वाले विजयवीर बचु खाबड़ा के साथ साथ प्रदीप सिंह जडेजा को भी मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। इस मंत्रिमंडल में गुजरात के बड़े पटेल पाटीदार नेताओं को एक बार फिर से जगह दी गई है, यह चेहरे हैं आरसी फलदू, कोशिक पटेल, जयेश रुधड़िया, परबत पटेल, ईश्वर सिंह पटेल, कुमार कनानी, सौरभ पटेल।

     खैर यह तो हुआ जीत के बाद बीजेपी द्वारा मंत्रिमंडल का गठन,,, अब यदि मुद्दे की बात करें तो क्या केवल सभी जाति एवं समुदाय को मंत्रिमंडल में जगह दे कर, इसे  2019 के लोकसभा चुनावों में जीत की तैयारी मान ली जाए ?
     कदापि नहीं, क्योंकि 2017 के इन विधानसभा चुनाव में गुजरात की जनता द्वारा एक संदेश दिया गया है कि मात्र विकास के रास्ते पर चलकर अब सत्ता नहीं पाई जा सकती बल्कि शासक के और भी बहुत सारे कर्तव्य हैं जैसे शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा, किसानों की कृषि संबंधी अनिश्चितताएं आदि !!  शायद नरेंद्र मोदी जी के देश के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद गुजरात के स्थानीय नेतृत्व ने पिछले 3 वर्षों में जनता के कुछ वर्गों की तरफ कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।
     तो अब जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में लगभग 2 वर्षों का ही समय रह गया है तो इन सभी तथ्यों पर भाजपा शासित सभी राज्य सरकारों एवं केंद्र में भाजपा की सरकार को निश्चित ही ध्यान देना पड़ेगा। यह ठीक है कि नोटबंदी एवं जीएसटी जैसे कुछ कड़े कदम सरकार ने उठाए हैं जो हिंदुस्तान के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए दीर्घकाल में फायदा दे सकते हैं लेकिन वर्तमान में मतदाताओं के बीच पनप रहे असंतोष का ख्याल रखा जाना भी अति आवश्यक है। आम जनजीवन में जरूरी रोजमर्रा की वस्तुओं के मूल्यों पर नियंत्रण किया जाना जरूरी है क्योंकि कमोबेश आज भी महंगाई की हालत जस की तस बनी हुई है साथ ही लगातार मौसम की मार झेल रहे किसानों की आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा के लिए ठोस नीतियां बनाया जाना एवं उनकी कार्यप्रणाली सही तरीके से चल रही है या नहीं, इन बातों पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है तो वही युवाओं के लिए नए रोजगार संसाधनों का सृजन किया जाना भी आवश्यक है।

     गुजरात विधानसभा में एक बात फिर से सामने आई है कि आज भी हिंदुस्तान की राजनीति की कमजोर कड़ी यही है कि किस तरह जनता को जाति एवं समुदाय मैं तोड़ कर सत्ता के करीब पहुंचा जा सकता है और यदि 2018 में होने वाले विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव एवं 2019 के लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी दलों की यही जुगत काम कर गई तो फिर भाजपा के लिए सत्ता में बना रहना बहुत मुश्किल हो सकता है, जैसा कि मोदी जी के विकास यात्रा के पथ पर निरंतर अग्रसर होते हुए गुजरात मॉडल के बावजूद भी स्वयं प्रधानमंत्री मोदी जी एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह जी के गृह राज्य में भी भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
     अब मोदी सरकार को वर्तमान में चलित आरक्षण नीति को सुधारना ही होगा, जैसा कि माननीय अदालत भी निर्देश दे चुकी है की आरक्षण नीति की समीक्षा की जानी चाहिए, ऐसा इसलिए भी जरूरी हो गया है कि आरक्षण लागू किए जाने के इतने वर्ष बाद भी दलित एवं आदिवासी समाज की स्थिति बद से बदतर हो गई है। इन्हीं समाज के कुछ एक लोग अति समृद्धशाली होने के बावजूद अपने ही समाज का शोषण करने में लगे हैं। वहीं दूसरी ओर अपनी अधिकतम सीमा लाँघ चुका आरक्षण देश के लिए एक समस्या बन चुका है, जिसके चलते स्वर्ण जाति के लिए रोजगार के अवसर लगभग खत्म से हो गए हैं और इन्हीं स्वर्ण जाति में से कुछ वर्गों को विपक्ष द्वारा लगातार उकसाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते हुए खुलेआम देखा जा सकता है।
      अतः निष्कर्ष के तौर पर मोदी सरकार के लिए यही संदेश होगा कि जनता आज भी विकास के लिए कुछ भी सहने को तैयार है लेकिन जहाँ तक पापी पेट का सवाल है तो सत्ताधारियों को भी अपना दायित्व पूरा करते हुए इस ओर ध्यान देना ही होगा अन्यथा दिल्ली दूर हो जायेगी।
जयहिन्द !!
वन्देमातरम !!
दिनेश भंडुला