16 दिसम्बर : तस्वीर का दूसरा रुख़

आज के दिन यानी 16 दिसम्बर के लिए सेना के पराक्रम को निश्चित ही नमन करूँगा लेकिन राजनीतिक तौर पर देखा जाये तो तत्कालीन सरकार की कूटनीति हार ही रही।
प्रथम तो यह कि 16 दिसम्बर 1971 भारत ने जिस एक नए देश बंग्लादेश को जन्म दिया वो भी मुस्लिम राष्ट्र ही बना।
दूसरी और सब से अहम बात कि भारत सरकार ने पाक लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में घुटने टेकने वाले 93000 पाक सैनिको को ससम्मान पाक को लौटा दिया जबकि भारत के लगभग 54 सैनिक जो पाक ने युद्ध बन्दी बनाये, उन्हें ना छुड़वाया गया और वे सभी पाक सेना की अमानवीय यातनाएं सहते सहते शायद अब तक शहादत पा चुके होंगे।
इतना ही नहीं जब हमारी सेनाएं लाहौर तक पहुंच चुकी थीं तो उन्हें ना केवल वापिस बुला लिया गया बल्कि युद्ध में जीती हुई 5600 वर्ग मील जमीन भी लौटा दी। जबकि 1948 में पाक द्वारा भारत के हिस्से की कब्जाई जमीन ना छुड़वाई और ऊपर से 17 दिसम्बर 1971 को युद्ध बन्दी की घोषणा के बाद जो सेना जहाँ है, उसी को आधार मान उसी रेखा को आधिकारिक रूप से नियन्त्रण रेखा ( LOC ) मान लिया गया।
तत्तकालीन इंदिरा सरकार को इस कदम से क्या निजी फायदा हुआ ये अभी भी जाँच का विषय है लेकिन इंदिरा सरकार का ये कदम हिन्दुस्तानी सेना और जनता के लिए किसी अपमान से कम ना था।
आज का दिन जहाँ हिन्दुस्तानी सैना के अदम्य साहस को नमन करने का दिन है तो साथ ही तत्तकालीन इंदिरा सरकार की कूटनीति हार के काले अध्याय का कड़वा घूंट भी पीने की याद भी दिलाता है।
जयहिन्द !!
दिनेश भंडुला

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