हड़ताल किसी विवाद का समाधान तो नहीं....

आजकल राजस्थान में डॉक्टर्स की हड़ताल अपने चरम पर है।
जैसा कि सर्वविदित है अभी मौसमी बीमारियों का सीजन है और आम जनता का बहुत बड़ा वर्ग इन बीमारियों से परेशान है, ऐसे में मौका देख डॉक्टर्स हड़ताल पर चले गए  भले ही जनता मरती रहे।
ऐसी घिनौनी अवसरवादिता कितनी सही है, इस सवाल का जवाब पूछने से पहले एक बात बताना चाहूँगा कि कभी किसी ने फौजियों को युद्ध के समय मोर्चा छोड़ हड़ताल पर जाते देखा है ?
जवाब एक ही है....
नहीं कभी नहीं !!
सोचो यदि दुश्मन हमला कर दे और फौजी हड़ताल पर चले जायें तो क्या भगवान रूपी ये डॉक्टर खुद को बचा पायेंगे ?
जवाब एक ही होगा...
कदापि नहीं !!
जहाँ तक मेरी जानकारी है, एक डॉक्टर के वेतन और भत्ते किसी सिपाही से कम नहीं हैं जबकि सिपाही की ड्यूटी एक डॉक्टर से कहीं ज्यादा मुश्किल है।
एक बात कहना चाहूंगा कि हर पेशे का समाज के लिए अपना अलग महत्व है और अच्छा यही रहता है कि यदि विरोध करना भी हो तो उस विरोध का तरीका मर्यादित हो।
अपना कार्य छोड़ हड़ताल पर चले जाना या इस्तीफा दे देना, कोई हल नहीं हो सकता।
चाहे हड़ताली कर्मी हो या आम जनता, भुगतना सब को समान रूप से ही होगा।
और इस में उन डॉक्टर्स का नुकसान ज्यादा होगा जिन की निजी प्रेक्टिस नहीं है बाकी नामी डॉक्टर्स की तो चाँदी ही है। बेचारे मरीज को इलाज तो करवाना ही तो चाहे जितनी फीस देनी पड़े देगा ही।
अतः हड़ताली डॉक्टर्स से निवेदन करना चाहूँगा कि पुनः काम पर लौट आयें और सरकार से वार्ता करते रहें। यदि सरकार हल नहीं निकालती तो आगामी विधानसभा चुनाव में बदला ले लेना, आम जनता को परेशान क्यूँ करते हो ?
हो सकता है किसी अन्य शहर में आप का कोई अपना ही बीमारी से तड़पता हुआ किसी डॉक्टर का इंतजार कर रहा हो।
#जयहिन्द
#दिनेश_भंडुला

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