आरक्षण की पुनः समीक्षा होनी चाहिये


मेरे बहुत सारे दोस्त हैं
उन में कई SC, ST तो कई पिछड़ी जाति से भी हैं जैसा कि वे स्वयं मानते हैं।
जब कि हम सभी एक दूसरे के घर आते जाते हैं, साथ में उठते बैठते खाते भी हैं।
मुझे कभी नहीं लगा कि वे किसी आदिवासी क्षेत्र में रह रहे हैं या किसी भी तरह से पिछड़े हैं क्योंकि आज उन के पास सभी तरह के संसाधन हैं।
अच्छे संस्थानों से शिक्षा ले रहे हैं।
अच्छा रहन सहन है, अच्छी गाड़ी वैगरह सब कुछ है।
फिर भी उन्हें सब कुछ फ्री मिल रहा है और साथ ही कम अंक होने के बावजूद भी वो सब हम से आगे निकल चुके हैं।
कारण...
सिर्फ अनुचित आरक्षण ....!!
अब प्रश्न ये उठता है कि उन्हें आरक्षण क्यों मिल रहा है ?
जैसा कि मुझे ज्ञात है कि आरक्षण इसलिए दिया गया कि प्राचीन काल में शुद्र दलितों पर स्वर्ण वर्ग द्वारा अस्पृश्यता का व्यवहार किया जाता था।
शुद्र का काम मैला उठाना ही होता था जबकि वैश्य व्यापर, ब्राह्मण शिक्षा और पूजा पाठ, क्षत्रिय समाज की सुरक्षा का कार्य करते थे।
उस वक्त कोई जातीय आधार तो था ही नहीं, सब कर्म के आधार पर था।
ये अच्छी सोच थी कि ईश्वर के बनाये सभी मानव समान हैं तो भेदभाव कैसा ?
शुद्र दलित को भी समान अधिकार मिलना ही चाहिए था इसलिए आरक्षण की व्यवस्था को लागू किया गया जो शायद समय के अनुसार उचित थी लेकिन आज तो ये वर्ण व्यवस्था रही ही नहीं.....
वर्ण की जगह जातियाँ कब आ गयी, पता ही नहीं चला ???
और आज तो जो आरक्षण का लाभ ले रहा है, वो किसी भी नजरिये से दलित नहीं दिखता...!!
और जो आज भी दलित है, वो उन्हीं दलितों में ऊपर उठ चुके सम्पन्न नेताओं की कठपुतली सा है.....
सिर्फ उस आंदोलन की भीड़ का हिस्सा
जो कड़ी धूप में सिर्फ इसलिए आज भी जल तप रहा है कि उनके तथाकथित आका सारे ऐशो आराम के साथ चैन से सो सके...!!
यानि आज की स्थिति और भी बदत्तर हो चुकी है।
अतः आरक्षण की इस व्यवस्था की पुनः समीक्षा होनी ही चाहिये।
और.......
समीक्षा इस लिए भी जरूरी है कि....
माना स्वर्णों द्वारा शूद्रों पर प्राचीन काल से अत्याचार होते आये लेकिन आज तो नहीं ना......
वैसे भी हमारे स्वर्ण पुरखों की किये की सजा हम को और हमारे बच्चों को क्यों मिल रही है ?
ऐसा तो किसी भी कानून सविंधान में नहीं लिखा ना....
कि बाप के जुर्म की सजा बेटे को होगी...
दादा के जुर्म की सजा पोते को मिलेगी ....!!
जयहिंद !!
#देबू_काका

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