कावेरी विवाद : आखिर क्यूँ आग लगा दी पानी में ?


कावेरी विवाद : क्यूँ आग लगा दी पानी ने ?
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कावेरी जल का मसला आज का नहीं है, ये बात अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। कहते हैं कि यह बवाल 19वीं शताब्दी में मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच में शुरू हुआ था। 1924 में इन दोनों के बीच एक समझौता हुआ, इस समझौते में बाद में केरल और पांडिचेरी भी शामिल हो गये थे।
लेकिन बाद में कर्नाटक को इस समझौते पर एतराज हो गया क्योंकि उसका मानना है कि अंग्रेज़ों की हुकूमत के दौरान कर्नाटक एक रियासत थी जबकि तमिलनाडु सीधे ब्रिटिश राज के अधीन था इसलिए 1924 में कावेरी जल विवाद पर हुए समझौते में उसके साथ न्याय नहीं हुआ और इस कारण आज वो पानी के बंटवारे पर शोर मचा रहा है।
कर्नाटक ये भी मानता है कि यहां कृषि का विकास तमिलनाडु की तुलना में देर से हुआ और इसलिए भी क्योंकि वो नदी के बहाव के रास्ते में पहले पड़ता है, उसे उस जल पर पूरा अधिकार बनता है।
इस मामले में 1972 में गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के बाद 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एग्रीमेंट किया गया, जिसकी घोषणा संसद में हुई थी और साल 1990 में तमिलनाडु की मांग पर एक ट्रिब्यूनल का भी गठन हुआ था जिसमें ये फैसला किया गया था कि कर्नाटक की ओर से कावेरी जल का तय हिस्सा तमिलनाडु को मिलेगा लेकिन बाद में कर्नाटक ने इससे भी इंकार कर दिया।
तमिलनाडु पुराने समझौतों को तर्कसंगत बताते हुए कहता हैै कि 1924 के समझौते के अनुसार, जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, अब भी वही मिले इसलिए वो सुप्रीम कोर्ट के पास गया था और इस बार कोर्ट ने उसके हक में फैसला सुना दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को 15 हजार क्यूसेक पानी 10 दिन तक तमिलनाडु को देने का निर्देश दिया जिसके चलते राज्यों में विरोध प्रदर्शन होने लगे जिसके बाद 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी मामले पर सुनाया अपना फैसला बदल दिया । नए फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए रोजाना 12000 क्यूसेक पानी छोड़ना होगा। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 20 सितंबर तक लागू रखने का आदेश दिया है लेकिन इसके बाद भी कर्नाटक-तमिलनाडु में हिंसा भड़क गई है।
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आखिर इतने बरसों में क्यों नहीं सुलझा पाई ये विवाद, राज्य और केंद्र सरकार ?
माना वर्तमान में कर्नाटक व पांडिचेरी में कांग्रेस और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक तथा केरल में कम्युनिस्ट सरकारे हैं लेकिन आज़ादी के बाद कई साल इन राज्यों और केंद्र में कांग्रेस का एकछत्र राज था, तब ये मुद्दा क्यों नहीं सुलझा लिया गया।
ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि आम आदमी, किसान गरीब और व्यापारी को हिंसा और आगजनी से कोई फायदा नहीं होने वाला, केवल राजनीती की रोटियां ही सेकी जाती रही हैं।
वैसे भी 70 के दशक तक कांग्रेस ने शायद ऐसे विवादास्पद मुद्दों को इसलिए नहीं सुलझाया कि इन्हीं रास्तो पर चल कर राजनितिक सत्ता की चाबी हासिल की जा सके।
पानी प्रकृति की एक अनुपम देन है, जिस पर सभी लोगों का समान अधिकार है।
आखिर अब तक नदियों के एकीकरण पर काम क्यों नहीं किया गया ?
बाँध बना कर राज्य विशेष को ही नदी के जल का अधिकार क्यों दिया गया ?
वर्षा की अधिकता के कारण बाँधो के ओवरफ्लो और टूटने के डर से फिर बेहिसाब पानी को छोड़कर अन्य राज्यों में तबाही मचाने का अधिकार किस ने दिया ?
जब वर्षा की अधिकता से पानी को रोक सकने की ताकत किसी भी राज्य सरकार या व्यक्ति विशेष में नहीं तो फिर वर्षभर नदियों के पानी को निर्बाध क्यों नहीं बहने दिया जाता ?
अतः नदियों के एकीकरण और जल बंटवारे पर राज्य सरकारों के अधिकार समाप्त कर केंद्र सरकार के अधिपत्य में एक विभाग बनाया जाये जो निष्पक्ष और जरूरत के हिसाब से पानी का वितरण करे।
ऐसे मुद्दों पर हो रही हिंसा और आगजनी की वीडियो रिकार्डिंग की जाये और जो भी व्यक्ति दोषी पाया जाये उस की सम्पति कुर्क कर होने वाले सार्वजनिक नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए।
जयहिंद !!

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