रियो 2016 : आखिर कहाँ हैं हम ?


रियो (ब्राज़ील ) 2016 में 5 अगस्त को आरम्भ हुए 31 वें ओलम्पिक खेल आखिर 21 अगस्त को समाप्त हो ही गये।
205 देशों ने इस खेलो के महाकुम्भ में भाग लिया। इस बार भारत की ओर से अब तक के सब से बड़े दल 118 खिलाड़ियों ने अपना भाग्य आजमाया।
बावजूद इसके भारत की झोली में सिर्फ दो पदक ( 1 पी वी सिंधु- रजत बैडमिंटन और 2 साक्षी मलिक - कांस्य कुश्ती ) ही आये और पदक तालिका में 67 वें नम्बर पर रहा।
आश्चर्य की बात ये है कि पदक तालिका में भारत से ऊपर 5-6 स्वर्ण पदक ले कर कीनिया, क्यूबा, जमैका जैसे देश भी है जो आर्थिक रूप से भी भारत से कमजोर हैं और क्षेत्रफल के हिसाब से कई राज्यों से भी छोटे हैं।
आज़ादी के 70 सालोँ में अभी तक हम खुद को खेलो में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कहीं भी खड़ा नहीं कर पाये।
आखिर कहाँ हैं हम ?
और क्यों ??
पदक तालिका में 45 स्वर्ण के साथ कुल 120 पदक ले कर नम्बर एक पर रहने वाले अमेरिका में खेल मंत्री का पद तक नहीं है। जाहिर सी बात है, जब खेल मंत्री जैसा राजनितिक पद ही नहीं होगा तो खेलो में राजनीती भी नहीं होगी।
वहीँ दूसरी तरफ भारत में खेल मंत्रालय भी है और लगभग अधिकांश खेल संघो पर राजनेताओं और उन के परिवारों का ही कब्जा रहा है।
70-80 साल के कई नेता तो ठीक से चल भी नहीं पाते लेकिन कामनवेल्थ खेल घोटाले जैसी मलाई खाने के लिए ऐसे पदों पर बरसों से कुंडली मारे बैठे हैं।
मजे की बात तो यह है कि इन नेताओं ने कभी भी बॉक्सिंग रिंग और कुश्ती अखाड़े में उतर कर नहीं देखा होगा और ना ही कभी बैट और रैकिट हाथ में पकड़ा होगा।
जबकि अमेरिका में ऐसे संघों की कमान उन खिलाड़ियों को सौंप दी जाती है जो खेलो में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा कर सन्यास ले चुके होते हैं।
अतः भारत सरकार को भी राज्य स्तरीय ऐसे ही अकादमी खोल कर उन्हें सभी सुविधाएँ मुहैया करवाना होगा।
कब्बडी और पहलवानी के राष्ट्रिय स्तर के कई खिलाडी आज सरकारों की बेरुखी के कारण ज़िन्दगी में भुखमरी के हालात में हैं। खेलो के प्रति समर्पित खिलाडियों को सरकार द्वारा भविष्य हेतु गारन्टी दिलवानी होगी।
एक अन्य बात कि आज भारत में चाहे सरकार हो, कम्पनियाँ हों या आम जनता हो...क्रिकेट को अहमियत दी जाती है वो अन्य खेल को क्यों नहीं दी जाती।
क्रिकेट टीम द्वारा किसी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई उपलब्धि हासिल करने पर करोड़ो रु की बौछारे कर दी जाती हैं जबकि अन्य खेलों को कोई तवज्जो नहीं दी जाती।
देश की हर गली गली में क्रिकेट के जानकर मिल जायेंगे लेकिन ओलम्पिक में कुल कितने खेल इवेंट हुए, आम जनता तो क्या भारतीय ओलम्पिक संघ के अधिकारी तक ना बता पायें।
बड़े शर्म की बात है कि ऐसे अधिकारी बिजनेस क्लास में सफर करते हैं और जी तोड़ मेहनत कर पसीना बहाने वाले खिलाड़ी इकॉनामी क्लास में।
इस बात का भी खुलासा हुआ कि रियो ओलम्पिक दल के साथ जो फिजियोथेरेपिस्ट भेजा गया उसे स्पोर्ट्स मेडिसन के बारे में कोई ज्ञान ही नहीं था, उन के पास सभी मर्ज़ की एक ही दवा काम्बिफ्लेम ही थी, जो बेहद शर्मनाक है।
एक और बात हमारे देश की लचर कानून व्यवस्था...
पहलवान नरसिंह यादव डापिंग मामले में अगर समय रहते उचित कारवाही की गई होती तो शायद एक स्वर्ण पदक भारत की झोली में आ सकता था क्योँकि 74 किलो भार वर्ग में कोई विशेष चुनौती भी नहीं थी।
आखिर NADA ( राष्ट्रिय एंटी डापिंग एजेंसी ) ने ना केवल एक पदक की उम्मीद खो दी बल्कि एक स्वर्णिम पहलवान का भविष्य ही अंधकारमय कर दिया।
अंत में आम जनता की भी कुछ जिम्मेदारी की ओर ध्यान दिलाना चाहूँगा।
मेरे शहर में 1982 के समय एक साइकलिंग वैलोड्राम बना था। उद्देश्य था कि राष्ट्रिय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएँ करवाई जायेगी।
एक दो बार राष्ट्रिय स्तर के प्रतियोगिता हुई भी, बहुत अच्छा लगा था, मन में एक भाव जगा कि साइकलिंग की जाये, क्योंकि हम भी अपने यौवन की दहलीज पर खड़े थे।
लेकिन कुछ समय पश्चात ही उसकी जर्जरता वैलोड्राम के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार को उजागर करने लगी और रही सही कसर आम जनता में से कुछ एक लोगों ने उस में लगे ईंट पाइप तक निकाल कर पूरी कर दी।
अगर हम सब चाहते हैं कि हम भी भविष्य में अमेरिका चीन जैसे खेल के क्षेत्र में स्थापित कर सके तो सरकार के साथ साथ हमें भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी और साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, साक्षी मलिक, दीपिका करमाकर जैसे खिलाड़ियों को अपने बच्चों का आदर्श बनाना होगा।
वन्देमातरम् !!
‪#‎देबू_काका‬

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