हमारे यहाँ तो मुफ़्त के चक्कर में सरकारे बन जाती हैं
अगर किसी से पूछा जाये कि...
तुम्हें कहीं सैर सपाटे के लिए जाना हो तो दुनिया के कौन से देश में जाना पसन्द करोगे ?
निश्चित ही अधिकत्तर लोगों का जवाब होगा....
स्विट्ज़रलैंड !!
वाकई खूबसूरत जगह है स्विट्ज़रलैंड
और....
जैसी खूबसूरत जगह, वैसी ही खूबसूरत सोच स्विस जनता की.....
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हाल ही में एक जनमत संग्रह करवाया गया स्विट्ज़रलैंड में...
" बेसिक इनकम गारन्टी "
इस की आवश्यकता और उद्देश्य ये था कि आधुनिक विज्ञान के दौर में बढ़ते मशीनीकरण के कारण रोजगार घट रहे हैं, भविष्य में जीवन यापन के लिये जनता को एक निश्चित आय प्रदान करना।
अर्थात् बिना कुछ काम किये मुफ़्त की कमाई....
हालाँकि वर्तमान स्विस सरकार के साथ साथ सभी राजनीतिक दल भी इस के विरोध में थे
लेकिन वोटिंग प्रक्रिया के बाद जो परिणाम सामने आया, बेहद आश्चर्य जनक रहा....
जहाँ इस के पक्ष में मात्र 23% वोट ही पड़े वहीँ 77% लोगों ने इसे साफ साफ नकार दिया।
77% लोगों का मानना है कि यदि बिना करे सब कुछ मिलने लगे तो हम आलसी हो जायेंगे
जो कि देश के भविष्य के लिए नुकसानदेह होगा।
यहाँ बताना चाहुँगा कि इस योजना में 18 साल से अधिक उम्र के प्रति व्यक्ति को प्रतिमाह 2500 स्विस फ्रैंक यानि लगभग 1 लाख 75 हजार रूपये और 18 वर्ष से कम उम्र वालों को 625 फ्रैंक यानि लगभग 45 हजार रूपये दिये जाने थे और ये योजना उन लोगों के लिये भी थी जो स्विट्ज़रलैंड में किसी अन्य देश से आ कर पाँच वर्ष से अधिक समय से बसे हुए हैं।
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अब बात हिंदुस्तान की करें तो यहाँ ऐसे जनमत से ही सरकारें बनती आई हैं, मुफ़्त बिजली, पानी, वाईफाई, मंगलसूत्र, लेपटॉप, साड़ियाँ, साईकिल, स्कूटी, दाल, चावल ना जाने क्या क्या....और अब फ्री में सरकारी नौकरी पाने की जुगत में एकजुट होते अलग अलग समुदाय.....
लगभग 82 लाख की जनसंख्या वाले छोटे से देश स्विट्ज़रलैंड की जनता ने ऐसे मुफ़्त के माल को यह कहते हुए नकार दिया कि भविष्य में विकट समस्याऐ आएगी, वहीँ सवा सौ करोड़ जनसंख्या वाले भारत में अगर ये योजनायें अपने पांव पसार रही हैं, तो निश्चित ही हिंदुस्तान के भविष्य के लिए खतरे की घण्टी है और हर जनमानस को भविष्य के बारे में सोचना ही होगा।
हालाँकि असमर्थ और असहाय को समर्थ बनाने तक ऐसी लाभकारी योजनायें चलाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकी हर व्यक्ति को रोजगार देना भी सरकार का ही कर्तव्य है
लेकिन समर्थ और साधन सम्पन्न लोगों द्वारा ऐसी मुफ़्त की योजनाओं को अपना हक मान कर आंदोलन पर उतर जाना और राष्ट्रीय सम्पति को नुकसान पहुँचाना भयावह स्थिति की ओर इशारा कर रहा है।
अब हिंदुस्तान में 1 लाख 75 हजार रूपये प्रतिमाह देना असम्भव ही है क्योँकि पूर्ववर्ती सरकारों की लाख कोशिशो के बावजूद आज भी हिंदुस्तान में प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह औसत आय मात्र 7200 रूपये ही हो पायी है।
आज भी हिंदुस्तान में 30 करोड़ से अधिक जनता गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है।
यहाँ गौरतलब बात यह है कि यदि वास्तव में ऐसी योजनाओं से आम जनता को कोई लाभ पहुंचता तो आज ना तो हिंदुस्तान में गरीबों की संख्या में वृद्धि होती और ना ही मुफ़्त में सरकारी नौकरी की चाहत रखने वाले जाति समुदाय दलित बनने की खातिर सड़को पर दंगे फसाद करते नज़र आते।
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आज हर राजनीतिक दल को चाहिए कि वो सत्ता के लालच में " मुफ़्त के माल " के लिये आम जन को भड़काना बन्द करे और हिंदुस्तान की जनता को भी अपना कर्तव्य समझते हुए कर्म को प्राथमिकता देनी होगी क्योँकि....
बगैर उत्पादकता के संसाधनों का उपभोग, तमाम संसाधनों को समूल नष्ट कर देता है और अंततः परिणाम दंगे फसाद लूटपाट के रूप में ही सामने आते हैं।
तो आइये संकल्प लें.....
यदि हम समर्थ हैं तो हम " मुफ़्त के माल " का त्याग करेंगे
तभी हम हिंदुस्तान को खूबसूरत और विकसित बना पायेंगे..
तभी हम यहीं " स्विट्ज़रलैंड " बसा पायेंगे।
जयहिंद !!
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