साहब !! कोई तो इलाज़ होगा इस नासूर का ?
कोई 65 - 70 पहले.....
साहब....
ना जाने कैसे ?
दोनों हाथों के अंगूठे में एक छोटी सी फुँसी हो गयी थी साहेब.....
छोटी सी ही समझ हम छोड़ दिये थे साहेब....
ना जाने साहेब !! वो फुँसी से फोड़ा बन गया।
साहेब फिर क्या था....अंगूठा काटना पड़ा।
साहेब अंगूठा काटने से भी आराम कहाँ आया.....
अब फोड़ा नहीं रहा साहब....
वो नासूर बन चला था.....
फिर वक्त आया तो दूसरे हाथ का अंगूठा भी काट देना पड़ा.....
लेकिन साहब #नासूर की #फितरत ही कुछ ऐसी होती है ना....
घाव बढ़ता गया...मवाद रिसता गया साहब...
पहले अंगूठे का मवाद भीतर ही भीतर रिसता रिसता ना जाने कब हाथ को खराब करता सर की ओर बढ़ चला...
पता ही ना चला साहब !!
आज कन्धे से ले कर सर तक में दर्द का सबब बन चुका है साहब....
और दूसरी तरफ भी कमोबेश यही हालात थे....
नासूर का मवाद वहाँ भी फैलने लगा भीतर ही भीतर....
दूसरी तरफ भी फेफड़े से ले कर नीचे टाँगो में भी फ़ैल चुका साहब....
काश....
तब #दिल ने दर्द को पहचान लिया होता और उसे फुँसी से फोड़ा, फोड़े से नासूर ना बनने दिया होता....
वही इलाज़ किया होता फुँसी का तो....
आज वो #छोटी_सी_फुँसी कैंसर बन पुरे तन को खराब ना करती।
साहब कोई तो इलाज़ होगा इस कैंसर का....
कोई तो....
#देबू_काका
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