देशद्रोह बनाम अभिव्यक्ति की आज़ादी
आज राष्ट्र के समक्ष एक बेहद ही गम्भीर चुनौती है कि हिंदुस्तान की सीमाओं की सुरक्षा के साथ साथ देश की आंतरिक सुरक्षा पर कैसे ध्यान दिया जाये।
एक तरफ जहाँ आतंकी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे तो वहीँ दूसरी तरफ देश के भीतर देश के ही कुछ नागरिक उन्हीं आतंकियों के समर्थन करते नजर आने लगे हैं, तो अब यह जरूरी हो जाता है कि केंद्र सरकार और सेना ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कारवाही करे।
हालिया घटनाओं को देखे तो देश की राजधानी दिल्ली स्थित JNU यूनिवर्सिटी में 9 फ़रवरी 2016 को तथाकथित नारे लगे, जिसमे छात्र संघ अध्यक्ष् कन्हैया और उमर खालिद व अन्य छात्र नारे लगाते साफ दिखाई दिए थे। कन्हैया जो कि मनुवाद, ब्राह्मणवाद, गरीबी, संघ आदि के खिलाफ तो उसी भीड़ में उमर खालिद भारत के टुकड़े करने, केरल कश्मीर की आज़ादी, अफज़ल और बट को फाँसी देने वाली देश की न्यायपालिका के विरुद्ध नारे लगाते दिखे थे।
इस मामले में दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार ने कारवाही करते हुए पहले कैन्हैया को और फिर उमर खालिद, अनिर्बान, आशुतोष को गिरफ्तार किया।
इन सभी पर भारतीय कानून के तहत कारवाही की जा रही है और कानून अपना जो भी फैसला देगा वो सर्वमान्य होना चाहिए।
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लेकिन लगभग हर मुद्दे पर केंद्र की सरकार का विरोध करने वाली कांग्रेस ने इस पर केंद्र सरकार को घेरते हुए इसे राष्ट्रद्रोह ना मानकर अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाम दे दिया। अब ये मसला पूर्णतया राजनीतिक रंग में रंगा जा चुका है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और राष्ट्रद्रोह पर हमारा सविंधान क्या कहता है, ये हर नागरिक को जानना और समझना होगा।
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अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक नहीं है और इस पर समय-समय पर युक्ितयुक्त निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। राष्ट्र-राज्य के पास यह अधिकार सुरक्षित होता है कि वह संविधान और कानूनों के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किस हद तक जाकर बाधित करने का अधिकार रखता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे- वाह्य या आंतरिक आपातकाल या राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अभिव्यक्ित की स्वंतत्रता सीमित हो जाती है।
सेक्शन 124-A के अनुसार जो भी मौखिक या लिखित, इशारों में या स्पष्ट रूप से दिखाकर, या किसी भी अन्य तरीके से ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है, जो भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के लिए घृणा या अवमानना, उत्तेजना या असंतोष पैदा करने का प्रयास करे, उसे दोषी सिद्ध होने पर उम्रकैद और जुर्माना या 3 साल की कैद और जुर्माना या केवल जुर्माने की सजा दी जा सकती है.
जवाहरलाल नेहरू ने सन् 1951 में 'राजद्रोह' से सम्बंधित धारा 124 (अ) के बारे कहा कि ऐसा प्रावधान ऐतिहासिक एवं व्यवहारिक कारणों से भारतीय कानून में नहीं रखा जा सकताI इलाहबाद उच्च न्यायालय ने रामनंदन बनाम राज्य (एआईआर 1959 इलाहबाद 101) में धारा 124 (अ) को निरस्त कर दिया था, परन्तु 1962 में सर्वोच्च न्यायालय के पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962 एआईआर 955) ने इस धारा को कुछ संशोधनों के साथ पुनर्जीवित कियाI
सन 1962 के एक उल्लेखनीय 'केदार नाथ सिंह बनाम बिहार सरकार' मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखने का निर्णय लिया था. हालांकि अदालत ने ऐसे भाषणों या लेखनों के बीच साफ अंतर किया था जो “लोगों को हिंसा करने के लिए उकसाने वाले या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने की प्रवृत्ति वाले हों.”
शायद अब समझने कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि अभिव्यक्ति की आज़ादी अपने विचार प्रकट करने का अधिकार तो है परन्तु वो विचार भड़काने के उद्देश्य से ना रखे जाएँ।
यहाँ उमर खालिद सहित कुछ युवाओ ने देश विरोधी नारे लगाये, जो हिंदुस्तान की अधिकांश जनता के मन को ठेस पहुंचाने के लिए काफी थे। उन तमाम वीडियो फुटेज की फोरेंसिक जाँच का काम कानून का है ना कि किसी नेता का।
वहीँ कन्हैया ने भी भारत की विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ नारे लगाये हैं और जो हिंदुस्तान के जनमानस पर आघात है और गैर जिम्मेदाराना है।
उपरोक्त मामले में भारत के वर्तमान कानून को अपना काम करने दिया जाये।
रही बात सविंधान संशोधन की तो मैं इस मामले में सविंधान संशोधन के लिए तड़प रही कांग्रेस को याद दिलाना चाहूँगा कि पिछले संसद सत्र में कांग्रेस के नेता मलिकार्जुन खड़गे जी ने धमकी भरे लहज़े में कहा था कि " सविंधान में फेर बदल किया गया तो रक्तपात हो जायेगा "
जबकि मोदी जी ने सत्ता सम्भालते ही अंग्रेज़ो के जमाने के बहुत से कानूनों को समाप्त करने की मंशा जाहिर की थी।
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अंत में मैं कन्हैया और खालिद के समर्थको से इतना ही कहना चाहूँगा कि कानून को अपना काम करने दे और अपना ध्यान पढ़ाई पर देवें ताकि उनका भविष्य और साथ ही उनके कन्धों पर टिका देश का भविष्य उज्ज्वल बनाया जा सके।
कांग्रेस को भी चाहिए कि ऐसे आधारहीन मुद्दों पर संसद का समय बरबाद ना करे और देश के विकास से सम्बंधित मामलों पर चर्चा में अपना दायित्व निभायें।
जयहिंद !!
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