काश....बचपन से पढ़ाया गया होता !!


एक कविता है " पुष्प की अभिलाषा "
ये कविता लिखी थी कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी ने
बहुत ही सुंदर कविता है
और
हम बचपन से पढ़ते आये... शायद....8-10 की उम्र रही होगी हमारी...
लेकिन...
आज 48 बरस की उमर में भी हमारे स्मृतिपटल में समायी हुई है
एक फूल की मन स्थिति का सजीव चित्रण....
वाह !!
फूल जो सुंदरी का गहना नहीं बनना चाहता और ना ही देवताओं के श्रृंगार में सजना चाहता है और ना ही राजा महाराजाओं की शान बनना चाहता है
फूल के लिए इन सब से सर्वोत्तम एक वीर सैनिक के शव पर चढ़ जाना है....
एक सैनिक को पुष्प के माध्यम से जो सम्मान कवि ने दिया, वो ही सम्मान सैनिक के लिए आज हमारे दिलो दिमाग में भी है...
हमने जो पढ़ा, वो देखा भी...
सैनिकों को अपनी जान जोखिम में डाल हम देशवासियों की रक्षा करते...
लेकिन.....
ना जाने.....
JNU के कन्हैया को किस शिक्षक ने कैसी शिक्षा दी.....
जो सैनिकों के लिए इतनी घिनौनी सोच लिए आज निकलना चाहता है....
:
लानत है ऐसे शिक्षक को.....
ऐसे शिष्य को.....
और...
ऐसी सोच को....
जयहिंद !!
वन्देमातरम् !!

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