सविंधान संशोधन जरूरी है



किसी सूचना या विचार को बोलकर, लिखकर या किसी अन्य रूप में बिना किसी रोकटोक के अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) कहलाती है। अत: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हमेशा कुछ न कुछ सीमा अवश्य होती है। भारत के संविधान के अनुच्छेद १९(१) के तहत सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी है।


अभिव्‍यक्‍ित की स्‍वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्‍यक्‍त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्‍यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक नहीं है और इस पर समय-समय पर युक्‍ितयुक्‍त निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। राष्‍ट्र-राज्‍य के पास यह अधिकार सुरक्षित होता है कि वह संविधान और कानूनों के तहत अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता को किस हद तक जाकर बाधित करने का अधिकार रखता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे- वाह्य या आंतरिक आपातकाल या राष्‍ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अभिव्‍यक्‍ित की स्‍वंतत्रता सीमित हो जाती है।
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आज ये जरूरी हो गया है ऐसे सभी अधिकारों की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि इनकी आड़ में कोई भी व्यक्ति देशद्रोह जैसे संगीन अपराधों में बच के ना जाने पाये।
इस मुद्दे पर हमें फ़्रांस जैसे देशों से कुछ सबक लेना होगा। हाल ही में फ़्रांस ने भी अपने सविंधान में संशोधन करते हुए ऐसे लोगो के खिलाफ सख्त कानून पास किया है, कानून के अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्र विरोधी नारे लगाते अथवा देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है तो उसे तुरन्त नागरिकता समाप्त कर देश निकाला देने का प्रावधान रखा गया है। ये कानून फ़्रांस के निचले सदन में पास हो चुका है।
#देबू_काका

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