ये कैसा विवाद ?
वर्तमान में कुछ तथाकथित समाजसेवी आन्दोलनरत हैं. वह आंदोलन को " हक की लड़ाई " का नाम दे कर एक नया विवाद पैदा कर देते हैं. उन को समाज के उत्थान से कोई सरोकार नहीं होता बल्कि निज स्वार्थ तक कार्यशील रहते हैं.
ऐसे ही कुछ लोगों में से एक है....तृप्ति देसाई !!
जी हाँ तृप्ति देसाई....ये महिला उसी अन्ना हजारे की " इण्डिया अगेंस्ट करप्शन " पाठशाला की शिष्या है जिस पाठशाला में अरविन्द केजरीवाल भी पढ़े थे.
आज अन्ना तो मानो रिटायर्ड हो चुके हैं और केजरीवाल.....जिस कांग्रेस के भ्रष्टाचारियों को सलाखों के पीछे डालने का वायदा करते नहीं थकते थे, आज दिल्ली का सिंहासन सम्भालते ही उसी कांग्रेस के साथ गलबहियां डाले जश्न मनाते नजर आते हैं.
उसी पाठशाला की तृप्ति देसाई ' काठ की हांड़ी दोबारा नहीं चढ़ती ' की तर्ज़ पर करप्शन जैसे मुद्दों से कोसो दूर एक नये विवाद की हांड़ी को चढाने में लगी है.
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आज तृप्ति देसाई महिलाओं के हक की लड़ाई की बात कर रही है......
मुझे समझ नहीं आता कि पूरी दुनिया में किसी भी व्यक्ति, दल, संस्था, मजहब को हक की लड़ाई लड़नी हो तो वह हिंदुस्तान ही क्यों आता है और हिन्दू धर्म की खामियां और परम्पराओं को निशाना क्यों बनाता है ?
यहाँ ये बता देना जरूरी होगा की पूरी दुनिया में प्रचलित धर्म सम्प्रदायों में हिन्दू धर्म ही है जिस में महिलाओं को पूजा पाठ करने का स्वतन्त्र अधिकार है.
हिन्दू धर्म में महिलाओं को देवी स्वरूप मान पूजनीय माना गया है.
और हिंदुस्तान में सभी धर्म की महिलाओं को स्वतन्त्र अधिकार है जैसे मतदान, शिक्षा आदि....जबकि ईरान वाटिकन सिटी आदि कई देशों में महिलाओं को वोट देने, पढ़ने जैसे अधिकार नहीं हैं.
पुनः मुद्दे पर आएं तो आज जिस तरह तृप्ति देसाई श्री शनि शिंगणापुर मन्दिर में महिलाओं द्वारा तेल चढाने को महिलाओं के हक की लड़ाई का नाम देना चाहती है, वो निंदनीय है. क्या तृप्ति को मुस्लिम या ईसाई धर्म की महिलाओं को हक दिलाने की नहीं सूझती ? ज्ञात रहे बहुत सी मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है वो भी इसी हिंदुस्तान में....लेकिन मैं इस मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहता क्योँकि मुस्लिम धर्म की अपनी कोई मर्यादा रही होगी, और मुस्लिम महिलाओं ने उस प्रथा को कायम रखा है.
ठीक उसी तरह 400 बरसो से ऐसी ही आस्था रही है श्री शनि शिंगणापुर मन्दिर की....
मन्दिर की मर्यादा का सम्मान करते हुए हिन्दू धर्म की महिलाओं ने इस प्रथा को कायम रखा है.
तो आज चन्द महिलाएं और बुद्धिजीवी पूछने में लगे हैं कि आखिर ऐसा क्यों ?
तो जनाब क्यों, कब, कैसे, कहाँ से बहुत से सवालों का जन्म होता है जिसका जवाब तो इस छोटे से कॉलम में देना मुमकिन नहीं है और ना ही आप जैसे लोग दे पायेंगे.
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ और ना मानो तो बहता पानी.....
मानने वाले पत्थर को भी भगवान मान कर पूज लेते हैं तो ना मानने वाले अपने जन्मदाता माता पिता को भी दुत्कार कर छोड़ देते हैं दर दर की ठोकरे खाने के लिए....
तो अंत में मैं तृप्ति और उसकी सहयोगी भूमाता ब्रिगेड से कहना चाहूँगा कि आप को तेल ही चढ़ाना है तो अपने घर पर ही शनि स्थापित करीये और तेल चढ़ाइये, कोई मनाही नहीं हैं....
लेकिन श्री शनि शिंगणापुर मन्दिर में अनेको लोग जिनमे महिलाये पुरुष दोनों सम्मिलित हैं, की आस्था और मर्यादा का मान रखते हुए एक विवाद को तूल देने की कोशिश ना करें.
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जय श्री शनि शिंगणापुर महाराज की
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