बस......अब और मत बांटो मेरे हिंदुस्तान को !!
हैदराबाद के रोहित बेमुला ने आत्महत्या कर ली.....
लेकिन तमाम विपक्ष एकजुट हो कर इसे हत्या में तबदील कर देना चाहता है. देश भर में लगभग हर जगह अपने 10-20 आदमी भी उतार दिए हैं विरोध प्रदर्शन करने के लिए. लगभग सभी टीवी चैनल भी जोर शोर से दिखाने में जुटे हैं. इस घटना को तथाकथित रूप से दलित बनाम स्वर्ण का रंग दिया जा रहा है......
अब ये आत्महत्या है या हत्या, ये तो कानून ही तय करेगा ना, तो फिर अदालत के फैसले के इंतज़ार के बिना इतना हंगामा क्यूँ ?????
मतलब साफ़ है.......अपना राजनैतिक स्वार्थ साधना !!
सत्ता पाने की लालसा.....देश और समाज जाये भाड़ में.......
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अभी बहुत से राज्यों के विधान सभा चुनाव होने हैं. अख़लाक़ रूपी रंग से रंग कर जो तस्वीर तैयार की थी उसका अच्छा खासा मोल मिला था ना बिहार में.....
तो फिर क्यों ना इसे फिर से आजमाया जाये...बिहार में ज्यादातर सीटें मुस्लिम बहुल होने के मुस्लिम कार्ड खेला और अब दक्षिणी पूर्वी राज्यो में दलित की बहुलता के कारण दलित कार्ड.......ये जहर इस घोला जा रहा है कि आज अजमेर के एक दलित छात्र ने वीसी और 6 प्रोफेसर के खिलाफ केस दर्ज़ करवाया तो दो तीन ने तब हंगामा करने की कोशिश जब माननीय प्रधानमन्त्री लखनऊ के अम्बेडकर यूनिवर्सिटी में दीक्षान्त समारोह में बोल रहे थे.......
दिल्ली, बिहार, यूपी, बंगाल में रोज हो रहे हत्याएं, लूटपाट बलात्कार पर कोई हंगामा नहीं......क्या वहाँ ये चुप्पी इसलिए कि वहाँ भाजपा सरकार नहीं है....
और कितना तोड़ोगे देश को, कितना बाँटोगे समाज को सत्ता के भूखों.......
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इतिहास गवाह है.......क़ि जब जब इन्होंने सत्ता लेनी चाही या फिर इनके हाथ से चली गयी, तब तब इन्होंने ऐसे घिनौने खेल खेले.....
1947 का बंटवारा क्या था ? सत्ता का लालच ही तो था.......लाखों लोगो की लाशो पर बन बैठे थे हिंदुस्तान के सिपहसलार.....
आज मोदी और भाजपा के ऊपर दलित और मुस्लिम के अत्याचारी का आरोप लगाने वाले क्या उस वक्त नरेंद्र मोदी नाम का कोई शख्स था या कोई भाजपा थी जो हिन्दू और मुस्लिमों के दंगे करवा रही थी ?
बहुत कम लोग जानते होंगे कि कल पाकिस्तान में बाचा खान यूनिवर्सिटी पर जो हमला हुआ, यही बाचा खान उर्फ़ अब्दुल गफ्फार खान उर्फ़ सीमांत गांधी ने पेशावर पख्तून के इलाके को हिंदुस्तान में ही रहने की ख्वाहिश जाहिर की थी लेकिन नेहरू गॉंधी ने भौगोलिक मजबूरियों का वास्ता देकर उनकी मांग ठुकरा दी थी, तब बाचा खान की दूर की सोच ने गाँधी जी से रुंधे गले से कहा था " आप ने हमे भेडियो के हवाले कर दिया " .....
उस बंटवारे से ना तो पाक का भला हुआ और ना ही हिंदुस्तान का.....
उसके बाद भी नहीं रुका ये सिलसिला....चलता गया और आज भी चल रहा है.....
1948 में कश्मीर के राजा की लिखित अनुमति के बावजूद अलग निशान, अलग प्रधान और अलग विधान के दलदल में धकेल दिया.....जिसका अंजाम ये हुआ कि फ़रवरी 1990 में सैकड़ो कश्मीरी पण्डितों का कत्लेआम हुआ और लाखों आज भी अपने घर में बेगाने से घूम रहे हैं......
1984 के हजारों निर्दोष सिखों के खून से रंगे हाथ आज मोदी विरोध में तख्तियाँ उठाये घूम रहे हैं.......
आज़ादी की लड़ाई मिल कर लड़ने वाले बाघ जतीन, सरदार भगत सिंह, अशफाक ख़ाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजगुरु आदि अलग अलग वर्ग प्रान्तों से आये सरीखे देशभक्तों को " जन मन गण.." और " वन्देमातरम् " गाने में सुकून मिलता था तो आज गीत मुस्लिमो और कुरान के खिलाफ किस ने और क्यों बना दिए....
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मतलब साफ है. जिस दल ने 67 सालों तक राज़ किया हो आज सत्ता छीन जाने के गम में कुछ भी करने को तैयार है. तभी तो सब से पहले पहुंच गए हैदराबाद दलित बनाम स्वर्ण का रंग भरने......
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बस....अब और टुकड़े मत होने दो मेरे देश प्रेमियों !!
वन्देमातरम् !!
जयहिंद !!
#देबू_काका
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