" आत्महत्या या हत्या " ~ हम तो सियासत करेगा......

रविवार को हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित बेमुला ने खुदकुशी कर ली।
अब विरोधियों को मौका मिले और सियासत ना हो.....ऐसा कैसे हो सकता है ?

इस मुद्दे पर चर्चा करूँ इस से पहले इस बारे में थोड़ी जानकारी देना मुनासिब होगा।

बात अगस्त 2015 की है जब केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी को पत्र लिखा था.

विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन कर रहे अंबेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन के सदस्यों ने भाजपा से जुड़ी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के अध्यक्ष सुशील कुमार के साथ कथित तौर पर धक्का-मुक्की की थी. इसके बाद दत्तात्रेय ने यह पत्र लिखा था.
बंडारु दत्तात्रेय ने लिखा था, "विश्वविद्यालय कैंपस जातिवादी, अतिवादी और राष्ट्र विरोधी राजनीति का अड्डा बनता जा रहा है. ये इससे साफ़ होता है कि जब याकूब मेमन को फांसी दी गई थी तो अंबेडकर छात्र संघ के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया था. "
दत्तात्रेय ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर मूकदर्शक बने रहने का आरोप लगाया था.
दत्तात्रेय के पत्र के बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने विश्वविद्यालय को एक पैनल बनाने का आदेश दिया था जिसने निलंबन का फ़ैसला किया था.
फिर छात्रों के विरोध के बाद प्रभारी कुलपति ने निलंबन का फ़ैसला वापस ले लिया था.
विश्वविद्यालय के कुलपति अप्पा राव पिंदिले ने कहा, "मैंने जब सितंबर में पदभार संभाला, तब मुझे बताया गया कि चूंकि जांच एक स्टैचूटरी समिति ने की है इसलिए इसके फ़ैसले को पलटा नहीं जा सकता."
उनका कहना है, "कार्यकारी परिषद की उपसमिति का अध्यक्ष होने के नाते मैंने उनके अकादमिक कोर्स से निलंबन का फ़ैसला वापस ले लिया ताकि वे फ़ेलोशिप से हाथ न धो बैठें. हमने इसके बदले में उन्हें सिर्फ हॉस्टल से निलंबित करने का फ़ैसला किया."

इस बीच एक छात्र के अभिभावकों ने निलंबन को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी. फिर कार्यकारी परिषद के फ़ैसले की जानकारी आने मिलने से पहले ही एएसए के नेतृत्व वाली ज्वाइंट ऐक्शन कमेटी ने विश्वविद्यालय के बाहर धरना शुरू कर दिया.
अप्पा राव ने कहा, "ये दुख की बात है कि एक छात्र ने जान दे दी. लेकिन उसका सुसाइड नोट देखकर साफ़ है कि उसने निलंबन की वजह से आत्महत्या नहीं की है. उसने पत्र में वजह अपनी मानसिक स्थिति बताई है."
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इस मामले में साफ़ कहा जा सकता है कि इस आत्महत्या का केंद्रीय मंत्री के पत्र से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि अगस्त 2015 में पत्र लिखा गया, फिर निलम्बन हुआ और रद्द भी हो गया, केवल हॉस्टल से निकाला गया तो उस घटना के लगभग 5 महीने बाद ये आत्महत्या और वो भी पाँच छात्रों में से एक........
कुछ समझ नहीं आया...
कोई तो है जो साज़िश कर रहा है ?
तभी तो राहुल गाँधी तुरन्त पहुँच गये चचा दिगविजय के साथ छात्रों के बीच...।
तो इधर दिल्ली में केजरीवाल ने भी उछलना शुरू कर दिया।
वो तमाम नेता जो बिहार में भाजपा की हार का जश्न मना रहे थे, आज भाजपा के दलित विरोधी होने का ढोल पीटने में लग गये।
राहुल जी....शायद आप की बिहार जीत की खुमारी टूटी नहीं है तभी तो इधर एक दलित छात्र ने आत्महत्या क्या कर ली, आप पहुँच गये मगरमच्छी आँसु बहाने......जबकि बिहार में रोज हो रही हत्या, लूटपाट, अपहरण पर आँखे बंद क्यों ?
अभी हाल ही में मथुरा ( यूपी ) में 5-6 गुंडो की गुंडई देखी जो एक दलित महिला को पीट रहे थे, शायद आप को नहीं दिखी राहुल जी....
दर्द मुझे भी होता है और हर इंसान को होना चाहिये....जब कोई मरता है या मार दिया जाता है....
लेकिन कुछ हत्याओं पर आँखे मूँद लेना और कुछ पर राजनीति करना आप को फायदा पहुँचा सकता हो लेकिन मुझे नहीँ भाता.......
#देबू_काका

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