आखिर कब बदलेगी राहुल की सोच...।

कभी कभी हार से हताश व्यक्ति की सोच इतनी संकीर्ण हो जाती है कि वह खुद को उठाने की कोशिश के बजाये जीतने वाले की टांग खींच कर उसे गिराने में ही अपनी सारी ताक़त झोंक देता है।
आजकल कुछ ऐसा ही राहुल गाँधी के साथ होता सा लग रहा है। शनिवार को जब राहुल  गाँधी मुम्बई के नरसी मोंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ सेमीनार में सम्बोघित कर रहे थे तो इस बात का तो ध्यान रखा गया कि माउन्ट कार्मेल बेंगलुरू वाली किरकिरी ना हो, सावधानी से सवालों और लोगों को चुना गया।
लेकिन यहाँ भी राहुल ने कुछ ऐसा बोला कि चर्चा करना जरूरी है।
मोदी सरकार की स्टार्ट अप इण्डिया योजना के बारे में राहुल ने कहा कि असहिष्णुता और स्टार्ट  अप दोनों में विरोधाभास हैं इसलिये स्टार्ट अप योजना नाकाम हो जायेगी।
लेकिन वहीँ दूसरी ओर उन्हीं की सरकार में वित्त मंत्री रहे वरिष्ठ कांग्रेसी और वर्तमान में राष्ट्रपति पद पर विराजित प्रणव मुखर्जी जी ने ना केवल इस योजना की तारीफ करते हुए इसे आर्थिक व औद्योगिक उन्नति में कारगर बताया बल्कि इस योजना के क्रियान्वयन में हुई देरी के लिए स्वयं को भी दोषी माना।
राहुल से एक बात कहना चाहूँगा कि पुरानी कहावत है " रोते जाओगे तो मरने की खबर ही लाओगे "
रही बात असहिष्णुता की तो बता दूँ , यह काल्पनिक हथियार मोदी सरकार के संयुक्त विपक्षी खेमे का था जो एक अख़लाक़ की मौत के बाद विपक्ष और मिडीया ने ऐसा चलाया कि बिहार के चुनावी रण में भाजपा गठबंधन को मात खानी पड़ी। इसमें ना तो मोदी जी की भाजपा नीत सरकार का कोई लेना देना था और ना ही किसी हिन्दूवादी संगठन का।
अपने आप को हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आदि सभी धर्मो की पैरोकार बताने वाली कांग्रेस का ये हथियार 1984 के हजारों निर्दोष सिखो की हत्या के समय भी नहीं निकला, कश्मीरी पंडितो के कत्लेआम के दौरान भी नहीं निकला और आज मालदा हो चाहे पूर्णिया की हिंसा आगजनी की वारदाते, तो भी नहीं निकला।
आज जब बिहार में रोजाना हत्या, लूटपाट और अपहरण की घटनाये बढ़ रही हैं तो भी पुरुस्कार लौटाने वाले, असहिष्णुता पर देश छोड़ने वाले तथाकथित योद्धा " रणछोड़ " बन चुके हैं।
अब असहिष्णुता रूपी साज़िश का पर्दा फाश हो चुका है, वहाँ इस महागठबंधन नहीं " महाठगबन्धन " को सत्ता सुख मिल गया है।
तो राहुल जी दूसरों के घरों पर पत्थर फेंकने से पहले अपने काँच के महलों को सम्भालों।
जयहिंद !?
वन्देमातरम् !!
#देबू काका

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