शून्य की खोज


शून्य की खोज'
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फेसबुक पर किसी ने यह पोस्ट की-
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शून्य की खोज आर्यभट्ट ने 5 वीं सदी में की तो द्वापरयुग में 100 कौरवों की गणना ,और त्रेतायुगमें रावण के 10 सिरों की गणना किसने की ??
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उस महानुभाव को मै यह कहना चाहता हूँ कि वह पहले हिन्दुओ के धर्म शास्त्रो का भली भांति पढ़ ले उसके बाद अपनी मूर्खता पर हँसे।
सभी महानुभावो से अनुरोध है कि पहले हमारे वेद-शास्त्रों का थोडा सा अनुशीलन कर लो जिससे ऐसी शंका ही न हो।
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अब बताते हैं शून्य की खोज किसने की तो वो हैं वेद । वेदों में 1 से लेकर 18 अंकों तक (इकाई से परार्ध ) की गणना की गयी है ।
1 के अंक में 0 लगाने पर ये गणना क्रमशः बढ़ती जाती है इस का स्पष्ट उल्लेख वेद भगवान् करते हैं --
'इमा मेऽअग्नऽइष्टका धेनव: सन्त्वेका च दश च शतं च शतं च सहस्रं च सहस्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं व नियुतं च प्रयुतं चार्बु दं च न्यर्बु दं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्च परार्धश्चैता मेऽअग्नऽइष्टका धेनव: सन्त्वमुत्रामुष
्मिंल्लोके ।। (शुक्ल यजुर्ववेद १७/२)
अर्थात् - हे अग्ने । ये इष्टकाऐं (पांच चित्तियो में स्थापित ) हमारे लिए अभीष्ट फलदायक कामधेनु गौ के समान हों । ये इष्टका परार्द्ध -सङ्ख्यक (१०००००००००००००००००) एक से दश ,दश से सौ, सौ से हजार ,हजार से दश हजार ,दश हजार से लाख ,लाख से दश लाख ,दशलाख से करोड़ ,करोड़ से दश करोड़ ,दश करोड़ से अरब ,अरब से दश अरब ,दश अरब से खरब ,खरब से दश खरब ,दश खरब से नील, नील से दश नील, दश नील से शङ्ख ,शङ्ख से दश शङ्ख ,दश शङ्ख से परार्द्ध ( लक्ष कोटि) है ।
यहाँ स्पष्ट एक एक। शून्य जोड़ते हुए काल गणना की गयी है ।
अब फिर आर्यभट्ट ने कैसे शून्य की खोज की ?
इसका जवाब है विज्ञान की दो क्रियाएँ हैं एक खोज (डिस्कवर ) दूसरी आविष्कार (एक्सपेरिमेंट) । खोज उसे कहते हैं जो पहले से विद्यमान हो बाद में खो गयी हो और फिर उसे ढूढा जाए उसे खोज कहते हैं ।
आविष्कार उसे कहते हैं जो विद्यमान नहीं है और उसे अलग अलग पदार्थों से बनाया जाए वो आविष्कार है ।

अब शून्य और अंको की खोज आर्यभट्ट ने की न कि आविष्कार किया
इसका प्रमाण सिंधु -सरस्वती सभ्यता (हड़प्पा की सभ्यता) जो की १७५० ई पू तक विलुप्त हो चुकी थी में अंको की गणना स्पष्ट रूप से अंकित है।
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संकलन कर्ता ~
‪#‎देबू_काका‬

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